बाबा रामदेव को हाईकोर्ट फिर पड़ी फटकार
‘चलो, धोखा खाओ!’—बाबा रामदेव की आवाज़ में गूंजती यह लाइन अब पतंजलि को भारी पड़ गई है। च्यवनप्राश के नाम पर ‘धोखा’ बताने वाला यह विज्ञापन लॉन्च होते ही सोशल मीडिया पर चर्चा में आया, लेकिन अब कानूनी पेंच में फंस गया है। एड में दावा किया गया कि अधिकतर लोग “च्यवनप्राश के नाम पर धोखा खा रहे हैं”, जिससे दूसरे ब्रांड्स को कमतर दिखाया गया।
अब दिल्ली हाईकोर्ट ने इस विज्ञापन पर सख्त रुख अपनाते हुए इसे 72 घंटे के भीतर सभी प्लेटफॉर्म्स—टीवी, डिजिटल, प्रिंट और सोशल मीडिया—से हटाने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि “तुलनात्मक विज्ञापन चलाया जा सकता है, लेकिन किसी अन्य ब्रांड को ‘धोखा’ कहना या नीचा दिखाना अनुचित है।” यह आदेश 6 नवंबर 2025 को जस्टिस तेजस करिया की बेंच ने दिया था, जिसे बुधवार को सार्वजनिक किया गया।
कोर्ट ने कहा—दूसरों को नीचा दिखाना ‘अनुचित प्रतिस्पर्धा’
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि किसी विज्ञापन में तुलना की गुंजाइश तो हो सकती है, परंतु झूठे या भ्रामक बयान देकर अन्य कंपनियों की साख को चोट नहीं पहुंचाई जा सकती। अदालत ने कहा, “एक आम उपभोक्ता की नजर में यह विज्ञापन यह इम्प्रेशन बनाता है कि बाकी सभी ब्रांड्स धोखा हैं।”
कोर्ट ने पतंजलि को निर्देश दिया कि वह 72 घंटों में यह एड सभी प्लेटफॉर्म्स से हटाए या ब्लॉक करे। रोक का दायरा राष्ट्रीय टीवी चैनल्स, स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स, डिजिटल, प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया अकाउंट्स—जैसे यूट्यूब, इंस्टाग्राम और फेसबुक—सभी पर लागू रहेगा।
डाबर की शिकायत से शुरू हुआ विवाद
यह मामला डाबर इंडिया की याचिका पर शुरू हुआ। डाबर, जो च्यवनप्राश मार्केट में करीब 60% हिस्सेदारी रखता है, ने कहा कि पतंजलि का यह एड न केवल उनके उत्पाद को बदनाम करता है, बल्कि पूरी च्यवनप्राश कैटेगरी की विश्वसनीयता को चोट पहुंचाता है। कंपनी ने इसे कॉमर्शियल डिस्पैरेजमेंट यानी प्रतिस्पर्धी को नीचा दिखाने का मामला बताया।
पतंजलि के विज्ञापन में “चलो, धोखा खाओ!” जैसे फ्रेज और बाबा रामदेव का यह बयान शामिल था कि “अधिकांश लोग च्यवनप्राश के नाम पर धोखा खा रहे हैं।” कोर्ट ने माना कि यह लाइन सीधी-सीधी दूसरे ब्रांड्स को “फेक या कमतर” बताने का प्रयास है, जो अनुचित व्यापारिक आचरण है।
रोक फरवरी 2026 तक लागू, तब होगी अगली सुनवाई
कोर्ट ने अंतरिम आदेश में कहा कि पतंजलि अब फरवरी 2026 तक कोई ऐसा नया विज्ञापन नहीं चला सकेगी जो दूसरों की प्रतिष्ठा पर प्रश्न उठाए या उनके उत्पादों की गुणवत्ता पर संदेह जताए। अगली सुनवाई 26 फरवरी 2026 को निर्धारित की गई है, जब केस के मेरिट्स पर बहस होगी।
यह फैसला विज्ञापन उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल (Benchmark) बन सकता है, जहां ब्रांड्स अक्सर एक-दूसरे को निशाना बनाकर प्रचार करते हैं।
पतंजलि बनाम डाबर—पहले भी भिड़ंत
इससे पहले भी जुलाई 2025 में डाबर की अपील पर कोर्ट ने पतंजलि के एक अन्य च्यवनप्राश एड को हटाने का आदेश दिया था। तब कंपनी ने अपने विज्ञापन में दूसरे ब्रांड के प्रोडक्ट को “साधारण” और “आयुर्वेद से दूर” बताया था।
विज्ञापन में स्वामी रामदेव यह कहते नजर आए थे कि “जिन्हें वेद और आयुर्वेद का ज्ञान नहीं, वे पारंपरिक च्यवनप्राश कैसे बना सकते हैं।” अदालत ने उस समय भी इसे अनुचित प्रतिस्पर्धा माना था।
भ्रामक विज्ञापनों पर पहले भी फटकार झेल चुके रामदेव और बालकृष्ण
पतंजलि के भ्रामक दावों का यह कोई पहला मामला नहीं है।
- अगस्त 2022: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि पतंजलि कोविड और अन्य बीमारियों के इलाज को लेकर झूठे दावे कर रही है।
- नवंबर 2023: सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने का आदेश दिया, लेकिन आदेश के बावजूद प्रचार जारी रहा।
- फरवरी 2024: अदालत ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया।
- मार्च–अप्रैल 2024: कोर्ट ने अवमानना की चेतावनी दी, कहा—आदेश न मानने पर सजा हो सकती है।
- 2025: दोनों ने माफीनामा दिया, जिसके बाद मामला बंद किया गया।
इंडस्ट्री में उठे सवाल—क्या विज्ञापन स्वतंत्रता की हद यहीं तक?
यह मामला अब केवल पतंजलि बनाम डाबर की लड़ाई नहीं रहा, बल्कि यह तय करेगा कि भविष्य में ब्रांड्स किस हद तक “तुलनात्मक प्रचार” कर सकेंगे। कोर्ट के इस आदेश ने स्पष्ट कर दिया है कि मार्केटिंग की आज़ादी वहीं तक है, जहां दूसरे की प्रतिष्ठा को ठेस न पहुंचे।

More Stories
लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास कार में भीषण धमाका, 8 की मौत, 25 घायल
EPFO ने दी कर्मचारियों को बड़ी राहत, नए नियम से करोड़ों लाभान्वित होंगे
यूजीसी ने जारी की 22 फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची, सबसे ज्यादा दिल्ली में