संगठनों ने तानाशाही रवैये का आरोप लगाते हुए आर-पार की लड़ाई का ऐलान किया
देहरादून:
राज्य सरकार द्वारा कर्मचारी आंदोलनों पर एस्मा लागू करने और उपनल कर्मियों के लिए ‘नो वर्क–नो पे’ आदेश जारी करने के बाद विभिन्न कर्मचारी संगठन विरोध में उतर आए हैं। संगठनों ने साफ कहा है कि वे दबाव में आने वाले नहीं हैं और सामूहिक रूप से इस लड़ाई को जारी रखेंगे।
मिनिस्टीरियल फेडरेशन के प्रांतीय अध्यक्ष मुकेश बहुगुणा ने सरकार पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह आदेश कर्मचारियों को डराने के लिए है, लेकिन संगठन इससे घबराने वाले नहीं हैं। सरकार को चाहिए कि संवाद बनाए रखे ताकि स्थिति हड़ताल तक न पहुंचे। उन्होंने आरोप लगाया कि शासन के कुछ अधिकारी तुगलकी आदेशों से टकराव की स्थिति पैदा कर रहे हैं, जिसे संगठन किसी हाल में बर्दाश्त नहीं करेंगे।
उधर, उत्तराखंड विद्युत अधिकारी कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने भी मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर उपनल कर्मियों की हड़ताल को समर्थन देने की जानकारी दी है। मोर्चा ने मांग की कि संविदा कर्मचारियों के नियमितिकरण एवं समान वेतन को लेकर पूर्व में की गई घोषणाओं पर तुरंत कार्रवाई की जाए ताकि कम वेतन पाने वाले कर्मचारी कठोर मौसम में आंदोलन बंद कर सकें। साथ ही चेतावनी दी कि यदि शासन ने कोई दमनात्मक कदम उठाया तो मोर्चा भी आंदोलन में उतर आएगा।
इसी बीच, उत्तराखंड शासन ने बुधवार को राज्याधीन सेवाओं में अगले छह माह तक हड़ताल पर प्रतिबंध लगाने की अधिसूचना जारी कर दी। कार्मिक सचिव शैलेश बगौली द्वारा जारी आदेश में कहा गया कि लोकहित को देखते हुए उत्तर प्रदेश अत्यावश्यक सेवाओं का अनुरक्षण अधिनियम, 1966 की धारा 3(1) के तहत यह प्रतिबंध तत्काल प्रभाव से लागू होगा।

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उपनल कर्मियों की हड़ताल क़ो लेकर शासन ने दिए कार्यवाई के निर्देश।
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