उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल) के कुलपति की नियुक्ति को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर महत्वपूर्ण सुनवाई की है। मामले की सुनवाई के बाद वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की खंडपीठ ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) सहित अन्य संबंधित प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
यह जनहित याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर की गई है, जिसमें विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति प्रो. श्री प्रकाश सिंह की नियुक्ति को निरस्त करने की मांग की गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि कुलपति की नियुक्ति केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 तथा यूजीसी विनियम, 2018 का उल्लंघन करते हुए की गई है।
याचिका में कहा गया है कि यूजीसी विनियम, 2018 की विनियम 7.3 के अनुसार किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति पद के लिए उम्मीदवार के पास विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में न्यूनतम 10 वर्षों का अनुभव होना अनिवार्य है, जबकि प्रो. प्रकाश सिंह इस मानक को पूरा नहीं करते। याचिकाकर्ता का तर्क है कि भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (IIPA) में चेयर प्रोफेसर के रूप में किया गया कार्य विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के अनुभव के समकक्ष नहीं माना जा सकता, क्योंकि IIPA न तो विश्वविद्यालय है और न ही यूजीसी के मानदंडों के अधीन संचालित संस्था।
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञापन में पात्रता को स्पष्ट रूप से “विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में 10 वर्ष के अनुभव” तक सीमित रखा गया था, जिससे किसी प्रकार की समकक्षता या शिथिलता की कोई गुंजाइश नहीं बनती। याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि चयन समिति को चयन प्रक्रिया के दौरान पात्रता शर्तों में बदलाव या ढील देने का अधिकार नहीं है।

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